कुछ कदमो का फासला बचा है मिटाने को।।
शिक़वा छोड़ हर अपने को गले लगाने को।।
तुम्हे देखती रही खुशियाँ देर तक उदासी में।।
तुम लगे रहे हर गम को फ़िर से मनाने को।।
चंद मिट्टी के खिलौने थे जो बारिश में भीग गये।।
वो किताब का पन्ना ले चला नाव बनाने को।।
जितनी सारी चाहते थी उतना ही दर्द मिला।।
कौंन ये बतलाये क्या वज़ह थी मुस्कुराने को।।
चलो एक कोशिश तो करो, फ़िर एक बार उठो।।
लड़ो खुद से हर दफ़ा हर बार ख़ुद को हराने को।।
Written by Dev Verma...