Monday 11 September 2017

कभी लफ्ज़






















कभी लफ्ज़ छुटते है 
            कभी अहसास छुट जाते है ||
भीड़ में साथ हो जब भी हम तुम
            क्यूँ फिर भी हाथ छुट जाते है ||
वो काट लेता है रातें अपनी 
            वो काट लेता है अपनी तन्हाई ||
जो हम न करे याद उसे कभी 
           जो हम न करे फरियाद उससे कभी |
हमारी इबादत टूटती है 
            कभी हमारे रिवाज़ टूट जाते है ||
कभी लफ्ज़ छुटते है 
            कभी अहसास छुट जाते है ||
भीड़ में साथ हो जब भी हम तुम
            क्यूँ फिर भी हाथ छुट जाते है ||

गुलों सा नम वो भी है 
            बागवान सा गुलज़ार वो भी है ||
किसी के गीत का मरहम वो 
            किसी ग़ज़ल में इबारत वो भी है ||
कई परतो में वो लिपटा है 
            कई आस्मां में वो सिमटा है ||
जो हम ना बिखरे तो उलझे है 
           जो हम ना सुलझे तो पागल है ||
कई मुददतो से प्यासा है 
           कभी सेहरा तो कभी समंदर है ||
वो जो भी है सही है
           हम जो भी है गलत है ||
कभी हमारे गुमां टूटते है 
           कभी हमारे हर खयाव टूट जाते है ||
कभी लफ्ज़ छुटते है 
            कभी अहसास छुट जाते है ||
भीड़ में साथ हो जब भी हम तुम
            क्यूँ फिर भी हाथ छुट जाते है ||


Written by Dev Verma




Wednesday 6 September 2017

गुज़र जाएगी हर तकलीफ मेरी















गुज़र जाएगी हर तकलीफ मेरी,
        मंजिल पाते पाते।।
हुआ जो दर्द कभी,
        सह लेंगे जाते जाते।।
कभी पत्थरो से उलझ जाएंगे कदम,
        कभी कांटो की चुभन होगी।।
मिलेंगी रुकावटें हर कदम,
         तन्हाई भी मेरी कहीं होगी।।
टेड़े मेढे रास्तो पे,
         थक्कन भी कहीं होगी।।
यूँ तो आसान हमारी भी
          रहगुज़र ना कहीं होगी।।
मिले जो रास्तो पे फूल तो पत्ता पत्ता चुन लेंगे,
गुनगुनी धूप में बदलो से कहानियां भी सुन लेंगे।।
तुम्हारी शिकायते भी करेंगे बरसते पानी से,
रातभर चाँद निहारेंगे, तुम्हे भी याद कर लेंगे।।
जानता हूं वक़्त सिमट जाएगा यूँ ही,
में कह दूंगा सब तुम्हे यूँ ही
हाले दिल अपना सुनाते सुनाते।।
गुज़र जाएगी हर तकलीफ मेरी,
        मंजिल पाते पाते।।
हुआ जो दर्द कभी,
        सह लेंगे जाते जाते।।


Written by Dev Verma